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विशाल भारद्वाज की पहली पहचान ‘माचिस’ के संगीत के कारण बनी थी। तब किसी ने सोचा भी नहीं था कि विशाल जल्द ही निर्देशन के क्षेत्र में उतर जाएँगे और उम्दा फिल्में बनाएँगे। बच्चों के लिए विशाल ने ‘मकड़ी’ बनाई। शेक्सपियर को पढ़ने के बाद विशाल ने शेक्सपियर के साहित्य पर आधारित ‘मकबूल’ और ‘ओंकारा’ जैसी उम्दा फिल्में बनाई।
इन दिनों विशाल भारत की स्टंट क्वीन नाडिया पर फिल्म बनाने की सोच रहे हैं। नाडिया की भूमिका के लिए वे हॉलीवुड की मशहूर कलाकार उमा थुरमन से बात कर रहे हैं। जबकि नायक के लिए विशाल के दिमाग में रितिक रोशन का नाम है। आखिर कौन है नाडिया जिसके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर विशाल ने उस पर फिल्म बनाने की बात सोची।
नाडिया का नाम आज के कई लोगों ने नहीं सुना होगा। लेकिन उनको यह जानकर आश्चर्य होगा कि तीस और चालीस के दशक में नाडिया बहुत बड़ी स्टार थी। आज के दौर में जब बड़ी से बड़ी नायिका अपने दम पर फिल्म नहीं चला सकतीं। नाडिया ने अपने बलबूते पर कई हिट फिल्में दी। ये बड़े दु:ख की बात है कि नाडिया को वह मान-सम्मान नहीं मिला जिसकी वह हकदार थी।
नाडिया का असली नाम मेरी इवान्स था। उसका जन्म 8 जनवरी 1908 को पर्थ (आस्ट्रेलिया) में हुआ था। आम लड़कियों की तरह नाडिया ने अपने कैरियर की शुरूआत स्टेनो-टायपिस्ट के रूप में की। उन दिनों नाडिया का वजन जरूरत से कुछ ज्यादा था। मोटापा कम करने के लिए वह नृत्य सीखने लगी। मैडम एस्त्रोवा नाम से उन्होंने कुछ समय तक रशियन सर्कस में काम किया। सर्कस में उन्होंने कई प्रकार के स्टंट सीखे। इसके बाद वे बैले ग्रुप की सदस्य बन गईं। यह ग्रुप स्टेज-शो करने भारत आया। एक ज्योतिष की सलाह पर नाडिया ने अपना नाम मेरी इवान्स से नाडिया कर लिया।
एक कार्यक्रम के दौरान नाडिया और होमी वाडिया का परिचय हुआ। इस मुलाकात के जरिए नाडिया को 1933 में प्रदर्शित ‘लाले यमन’ में समूह नर्तकी का रोल मिला। 1935 में प्रदर्शित ‘हंटरवाली’ ने नाडिया को स्टार बना दिया। उसकी इमेज स्टंट क्वीन के रूप में लोकप्रिय हो गई।
ऊँची-पूरी, गोरी-चिट्टी नाडिया के लिए नायक ढूँढना मुश्किल था। आल इण्डिया बॉडी ब्यूटीफुल कॉम्पिटिशन के विजेता जॉन कावस का व्यक्तित्व शानदार था। वे हट्टे-कट्टे कदकाठी के कद्दावर व्यक्ति थे। इसलिए उन्हें नाडिया का हीरो बना दिया गया। नाडिया की सफलता के पीछे जॉन का बहुत बड़ा हाथ था।
उस समय तकनीक इतनी उन्नत नहीं थी। स्टंट दृश्य करने में जान का जोखिम बना रहता था। नाडिया स्टंट करने में पारंगत थी। उसकी कई बार हड्डियाँ टूटी, लेकिन वह हमेशा अपने स्टंट खुद करती थी। उसके स्टंट दृश्य देखकर दर्शक चकरा जाते थे। आज के स्पाइडरमैन और सुपरमैन की तरह नाडिया की भी एक इमेज थी। परदे पर वह बहादुर और सच्चाई की राह पर चलने वाली महिला का किरदार निभाती थी। नकाबपोश, हाथ में हंटर और पैरों में लांग-बूट पहने जब वह दुश्मनों को सबक सिखाती थी तो सिनेमाहॉल दर्शकों की तालियों और सीटियों से गूँज उठता था। घोड़ा और कुत्ता नाडिया के साथी थे।
कुश्ती, तलवारबाजी, घुड़सवारी, कहीं से भी छलाँग लगाना, चलती ट्रेन पर लड़ाई करना, ट्रेन से घोड़े पर बैठ जाना जैसे स्टंट करना नाडिया को बेहद पसंद थे। नाडिया और जॉन कावस को चलती ट्रेन पर स्टंट करने का शौक था। इसलिए ट्रेन फिल्मों की सीक्वल बनाई गई जिनके नाम थे ‘फ्रंटियर मेल’, ‘पंजाब मेल’ ‘दिल्ली एक्सप्रेस’।
टॉकीज में जो लोग आगे बैठते थे, उन्हें उस समय चवन्नी क्लास कहा जाता था। नाडिया के वे दीवाने थे। नाडिया के हैरतअंगेज करतब देखने में उन्हें खूब आनंद आता था। उस जमाने में जब नारी हमेशा पुरुषों के पीछे ही खड़ी होती थी। उसे अत्यंत कमजोर माना जाता था, नाडिया की सफलता आश्चर्यचकित कर देने वाली है।
नाडिया सुपरवूमन थी। अपनी दिलेरी के बल पर उसने दर्शकों का दिल जीत लिया था। उसे फ्री, फ्रेंक, फीयरलेस स्टंट क्वीन नाडिया कहा जाता था। अपनी फिल्म ‘डायमंड क्वीन’ के प्रचार में उसने लिखवाया था- ‘थका देने वाली फिल्में और होंगी, मेरी फिल्म देखकर दर्शक जोश से भर जाते हैं।‘
विदेशी होने के कारण नाडिया को हिन्दी के संवाद बोलने में कठिनाई महसूस होती थी, लेकिन वह जुबां के बजाय हाथ-पैर ज्यादा चलाती थी। रोने-धोने वाले दृश्य उसे बिलकुल भी पसंद नहीं थे और इस तरह के दृश्य उसने कभी नहीं किए।
पिछले दिनों जर्मन लेखिका डोरोथी वेनर की पुस्तक ‘फीयरलेस नाडिया’ का अँगरेजी संस्करण भारत में आया है। डोरोथी ने बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में नाडिया पर आधारित डाक्यूमेंट्री ‘द हंटरवाली स्टोरी’ देखी और बेहद प्रभावित हुई। उन्होंने जर्मन भाषा में एक पुस्तक लिख दी।
52 वर्ष की उम्र में नाडिया ने अपने निर्माता-निर्देशक होमी वाडिया से शादी की। 1935 से 1968 तक नाडिया ने कुल 42 फिल्मों में काम किया। 10 जनवरी 1996 को नाडिया का देहांत हुआ।
नाडिया की प्रमुख फिल्में
हंटरवाली (1935) मिस फ्रंटियर मेल (1936) पंजाब मेल (1939) डायमंड क्वीन (1940) हंटरवाली की बेटी (1943) स्टंट क्वीन (1945) हिम्मतवाली (1945) लेडी रॉबिनहुड (1946) तूफान क्वीन (1947) दिल्लीClick here to see more news from this city एक्सप्रेस (1949) कार्निवल क्वीन (1955) सर्कस क्वीन (1959) खिलाड़ी (1968)
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